अनुच्छेद 370 में परिवर्तन के बाद 5 अगस्त से कश्मीर घाटी में इंटरनेट बंद है। बीती 12 नवंबर को कश्मीर में इंटरनेट सेवाएं बंद हुए पूरे 100 दिन हो गए। अभी भी यहां इंटरनेट बंद ही है। इससे कश्मीरियों को कई तरह की परेशानी हो रही है लेकिन इस दौरान उनका इंटरनेट चलाने में बर्बाद होने वाला समय भी बचने लगा। युवाओं ने ऑफलाइन वेबसीरीज देखी। बुजुर्गों का समय पार्क में बीतने लगा। लोगों ने ज्यादा किताबें भी पढ़ीं। वीडियो के लिए घाटी के लोग अपने मुहल्ले के उन छात्रों को वेब सीरीज और मूवी की लिस्ट दे दिया करते थे, जिन्हें कॉलेज का फॉर्म भरने के लिए जम्मू, दिल्ली या अन्य शहरों में जाना पड़ता था।
इस बार श्रीनगर, अनंतनाग समेत घाटी के एक दर्जन जिलों में सबसे ज्यादा दिन तक आम लोगों के लिए इंटरनेट सेवा बंद है। मोहम्मद जेबान वफाई श्रीनगर में रहते हैं। उन्होंने बताया कि इग्नू का एक फॉर्म भरने के लिए सितंबर में श्रीनगर से दिल्ली आना था। करीब 50 से ज्यादा मिलने वालों और रिश्तेदारों ने मुझे नए-पुराने गाने, फिल्में और वेब सीरीज की लिस्ट थमा दी। दिल्ली जाने पर मैंने अलग-अलग जगहों से डेढ़ सौ से ज्यादा मूवी, वेब सीरीज और गाने की एक टेरा बाइट (एक हजार जीबी) की हार्ड डिस्क में सेव करवाए। जब मैं कश्मीर पहुंचा तो कई छोटी-छोटी पेन ड्राइव में इन्हें बांट दिया। मोहम्मद जेबान ने बताया कि मेरे कई जरूरमंद कश्मीर से बाहर अन्य शहरों में गए, वे अपनों लोगों के लिए ऐसे ही कई वीडियो लेकर आए।
वहीं श्रीनगर के शनत नगर मुहल्ले के निवासी रिटायर्ड अधिकारी बशीर अहमद शाह बताते हैं कि टीवी का रिचार्ज सितंबर शुरू होने के पहले खत्म हो गया। इंटरनेट-कॉलिंग सुविधा भी बंद हो गई। ऐसे में समय बिताना मुश्किल लग रहा था। वैसे मैं आमतौर पर कम्यूनिटी पार्क सुबह घूमने जाता था। लेकिन जब कर्फ्यू में ढील दी गई तो मैं इस पार्क में सुबह-शाम ज्यादा वक्त देने लगा। अन्य दिनों की अपेक्षा यहां पांच से छह गुना ज्यादा भीड़ सुबह-शाम आने लगी। कई अनजान लोग मित्र बन गए। उन पड़ोसियों के यहां दावतों का दौर चलने लगा, जिनसे हफ्ते में एक-दो बार ही दुआ-सलाम होती थी।
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. शेख गुलाम रसूल बताते हैं कि मेरे पास किताबों का अच्छा कलेक्शन है। घाटी में बंद के समय में मुझसे मेरे कई मित्रों ने किताब मांगी। ये ऐसे मित्र थे जो अक्सर किताबों से दूर भागते थे। कुछ समय पहले मेरे एक मित्र दिल्ली से आए तो अपने साथ अंग्रेजी की कुछ किताबें और मैगजीन ले आए। इससे हमारा अच्छा समय बीतने लगा।
श्रीनगर के महाराजगंज में रहने वाले पत्रकार बिलाल बशीर बताते हैं कि अनुच्छेद 370 हटने संशोधित होने के बाद कुछ दिनों तक घाटी पूरी थम गई। जब कर्फ्यू में ढील दी गई तो श्रीनगर के डिप्टी कमिश्नर ऑफिस के पास लंबी लाइन लगने लगी, क्योंकि उस समय यहीं से लैंडलाइन चल रह था। उन्हें सिर्फ एक कॉल करने की इजाजत दी जाती थी। लोग अपनों की खैर-खैरियत तो पूछ ही रहे थे, लेकिन सबसे ज्यादा लोग अपना टीवी, प्रीपेड मोबाइल रिचार्ज और बिजली के बिल जमा करवा रहे थे। कुछ अपने पोस्टपेड के बिल का भुगतान करने के लिए अपने दोस्तों या संबंधियों को फोन कर रहे थे। उस समय तक लोगों को उम्मीद थी कि जब भी प्रीपेड या पोस्ट पेड मोबाइल कॉलिंग या इंटरनेट की सुविधा सरकार घाटी में शुरू करे तब उनके पास इसके इस्तेमाल का बैलेंस हो। मोबाइल की पोस्टपेड कॉलिंग सुविधा अब शुरू हो गई है। लेकिन एसएमस, इंटरनेट, प्रीपेड सर्विस अभी भी बंद है। गौरतलब है कि इंटरनेट सेवाओं को बंद किए जाने का फैसला इस साल 51वीं बार किया गया है।