फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने ईरान पर न्यूक्लियर हमला करने में सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल बनाने का आरोप लगाया है। तीनों देशों के राजदूतों ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के सेकरेट्री जनरल एंटोनियो गुटेरस को पत्र लिखकर इस पर आपत्ति जताई है। इनका कहना है कि ईरान ने संयुक्त समग्र कार्ययोजना(जेसीपीओ) न्यूक्लियर समझौते का उल्लंघन करते हुए ये मिसाइल तैयार किया है।
इस साल अप्रैल में ईरान ने मीडियम रेंज के मिसाईल शाहब-3 का परीक्षण किया था। इस परीक्षण के कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर भी उपलब्ध हैं। पत्र में कहा गया है कि ये मिसाइल टेक्नोलोजी कंट्रोल रेजिम कैटगरी-1 प्रणाली से लैस है। यह तकनीक ही इसे न्यूक्लियर हमला करने के योग्य बनाता है।
ईयू के देश की समझौते के नियमों का पालन नहीं कर रहे: ईरान
ईरान ने अपने ऊपर लगाए गए आरोप का खंडन किया है। ईरान के विदेश मंत्री जावद जरीफ ने ट्वीट किया कि यूरोपीय यूनियन के तीन देश निराश होकर झूठे आरोप लगा रहे हैं। ये देश खुद समझौते के नियमों का कम से कम पालन कर रहे हैं, इसे ढकने के लिए ही वे हमपर आरोप लगा रहे हैं। अगर ये देश वैश्विक विश्वसनीयता कायम रखना चाहते हैं तो हमें अमेरिका के सामने झुकने के लिए मजबूर करने के बदले खुद की संप्रभुता कम करें।
2015 में विएना में न्यूक्लियर समझौता हुआ था
ईरान ने 14 जुलाई 2015 को विएना में संयुक्त राष्ट्र के साथ संयुक्त समग्र कार्ययोजना (जेसीपीओए) पर हस्ताक्षर किए थे। इसे आम तौर पर ईरान न्यूक्लियर समझौते के तौर पर जाना जाता है। समझौते में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य (पी-5) चीन,फ्रांस, रूस,ब्रिटेन जर्मनी ने हस्ताक्षर किए थे। इसके साथ ही अमेरिका और यूरोपीय यूनियन भी इस समझौते का हिस्सा था।
पिछले साल अमेरिका समझौते से बाहर हो गया था
2018 में अमेरिका इस समझौते से बाहर हो गया था। इसके बाद से ही तेहरान पर कई प्रकार की पाबंदिया लगा दी गई। ईरान इसके बावजूद भी हथियारों का परीक्षण कर रहा है। इस समझौते में इस बात पर सहमति बनी थी कि ईरान 8 साल तक बैलिस्टिक मिसाइलों का उपयोग नहीं करेगा। समझौते के तहत ईरान पर किसी प्रकार के न्यूक्लियर मिसाइल का परीक्षण भी नहीं कर सकता।